मंगलवार, 21 अगस्त 2012 | By: हिमांशु पन्त

दिल से निकले कुछ हाइकु।

तुमको ढूंढा,

हर किसी जगह,

मिले मुझ में.


मिला तुमसे,

तो लगा कुछ ऐसा,

की हो अपने.


एहसास है,

या की कोई सपना,

तेरा ये साथ.


डूब न जाऊं,

इस समंदर में,

उफ़ ये नैना.


हर पल है,

तेरे संग ये मन,

रहूँ या नहीं.

अरे हाँ तुम ही तो थी

दिल के झरोखे से कुछ आह्ट सी सुनाई दी,

झाँक के देखा तो कुछ भी तो न था वहां पर,

इक पल को कुछ ठिठका और फिर ठहरा,

शायद वो तुम ही थी.. अरे हाँ तुम ही तो थी ,

तुम मेरे चेतन से निकलने वाली आवाज,

फिर शायद आज कुछ लिखवाना था तुमको,

हाँ याद आया तुम सुबह से खटखटा रही थी,

सुबह अखबार की खबरों के साथ तो उठी थी,

पर आज उनको लिखने का मन नहीं करता,

क्या करना तुम को उन सब जग व्यथाओं से,

लिख देगा कोई न कोई आज भी कहीं उनको,

तुम तब बताना जब उनसे लड़ने का मन हो,

तुम तब झकझोरना जब असहनीय सा लगे,

तब शायद कहीं जोश में आ के कुछ लिख दूं।