गुरुवार, 22 अप्रैल 2010 | By: हिमांशु पन्त

कैसा होता है दीवाना..

अश्रुओं की धारा,
ग़मों का दरिया,
यादों का सागर,
बस कुछ ऐसा ही....


दर्द भरा दिल,
सपनों भरा चेतन,
चित्त मे कई मर्म,
बस कुछ ऐसा ही....

खामोश सी जुबान,
बहकते से कदम,
बुझती सी आँखें,
बस कुछ ऐसा ही....

प्रेम को तलाशता,
पुष्पों को निहारता,
सोचता सा हरदम,
बस कुछ ऐसा ही....

बेरंग जिसका रंग,
ढीला सा एक बदन,
उलझा हुआ जीवन,
बस कुछ ऐसा ही....

मुट्ठी बंद हाथ,
बिखरी सी उंगलियाँ,
उनमे चलती अनबन,
बस कुछ ऐसा ही....

काँटों पे चलता,
पंखुड़ियों से डरता,
खुशबू से उलझन,
बस कुछ ऐसा ही,
होता है एक दीवाना...

जिंदगी खो दी मैंने तो

वक़्त भी ना मिल पाया मुझको कभी अगर माँगा भी तो ..
उस एक वक़्त की कमी से पूरी जिंदगी ही खो दी मैंने तो..

दोबारा जी भी सकूँगा के नहीं पता नहीं अब जिंदगी तुझे..
तेरी ही चाह में हर पल की अपनी ख़ुशी ही खो दी मैंने तो..

कभी यादों ने परेशां किया तो कभी दिल के जख्मों ने..
परेशानियों को भुलाने मे बची हर हंसी ही खो दी मैंने तो..

खुदा से मांगी दुआएं की दिल को सुकून कुछ तो मिले,
मांगने की फितरत मे खुदा की बंदगी ही खो दी मैंने तो..

मशगुल तब तो कुछ जेहन रहने लगा हर घड़ी सोचों मे..
इन सोचों के घेरों मे अपनों की कमी ही खो दी मैंने तो..

मय पीना फितरत तो ना थी पर फिर आदत सी बन गयी..
नशे मे इस कदर डूबा की अपनी जमीं ही खो दी मैंने तो..

महकती हुई फिजाओं मे भी दुस्वारियां सी दिख्नने लग गयी..
काँटों को छांटने मे महकते फूलों की खुशबू ही खो दी मैंने तो..

अधूरी सी कुछ ख्वाहिशें हर पल हर कदम सताती मुझको..
ख्वाहिशों की चाहत मे रिश्तों की हर कड़ी ही खो दी मैंने तो..