मंगलवार, 6 अप्रैल 2010 | By: हिमांशु पन्त

पराई सड़क..

एक एहसास है मेरे मन का, किसी एक रास्ते को खो देने का दर्द, वो रास्ता जिससे गुजरने मे कभी मुझे दिन भर की खुशियाँ एक पल मे ही मिल जाती थी.. पर आज वो ही सड़क पता नहीं क्यूँ एकदम अजनबी सी है... कदम तो अब भी उधर मुड़ते हैं पर एक अजीब से डर के साथ.. डर उस सड़क के खो जाने का.. उस सड़क की छाँव के खो जाने का.. मंजिल मे न पहुँच पाने का...

मन मे एक मायूसी सी आज फिर छाई है,
हाँ मुझे एहसास है की वो सड़क अब पराई है.

चलता था किसी भी राह पे, कदम खुद मुड़ जाते थे,
उसकी गलियों से गुजरने को, बहाने हर पल बनाते थे.
पर आज उन राहों पे सिर्फ और सिर्फ तन्हाई है,
हाँ मुझे एहसास है की वो सड़क अब पराई है.

दिख जाये बस झलक उसकी, आरजू हमेशा होती थी,
चेहरा जिधर भी होता, नजरें उसको कभी न खोती थी,
पर आज आँखों पे सिर्फ उसकी अधूरी परछाई है,
हाँ मुझे एहसास है की वो सड़क अब पराई है.

बहुत दूर जा चुकी वो, पर अक्स अब भी मेरे पास है,
यादों को भुला भी दूं, तो मन मे उसका एहसास है,
पर उसको सोचने मे भी तो अब खुद की ही रुसवाई है,
हाँ मुझे एहसास है की वो सड़क अब पराई है.

आज भी गुजरता हूँ उन्ही राहों से, तलाशते हुए उसको,
थक सा गया हूँ बेरुखी से, दर्द देता हूँ अब खुद को,
पर खो चुका हूँ उसे मै अब यही मेरी सच्चाई है,
हाँ मुझे एहसास है की वो सड़क अब पराई है.

इस राह के आखिर मे सिर्फ एक अँधेरी खाई है,
हाँ मुझे एहसास है की वो सड़क अब पराई है.