शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011 | By: हिमांशु पन्त

कुछेक ग़जल

क्या मजा है जाने उन्हें याद फरमाने में,
भूले तो वो ही थे हमे किसी ज़माने में,

कौन कहता है सजा है मोहब्बत अरे सुनो,
मजा ही अलग है ख़्वाबों को सजाने में,

वादे करना तो कोई दुस्वरियों का काम नहीं,
उम्र निकल जाती है पूरी इन्हें निभाने में.

किस्से तो अपने भी बने थे किसी वक़्त पे,
पर जुबां पलट जाती है उन्हें सुनाने में.

तेरी यादों के सिलसिले चलायें भी तो कभी,
दोस्त भी तो थक जाते हैं जाम बनाने में.

लगा था की नज़रों में बस वो जम ही गए ,
दो पल न लिया गोया खुद को गिराने में.

कौन कहता है की अब इश्क नहीं करते हम,
मय से दिल लगा लिया है अब मैखाने में.

 
बुधवार, 5 अक्तूबर 2011 | By: हिमांशु पन्त

याद आ जाती है मधुशाला

जीवन के कितने पृष्ठ,
कुछ छुए कुछ अनछुए,
कैसे इन सबका सार करूं,
याद आ जाती है मधुशाला.

ग़मों को सह सह टूटी हुई,
जग विरोध से रूठी हुई,
जैसे कोई सकुची सी बाला,
याद आ जाती है मधुशाला.

प्रेमियों के मन को संभालती,
कुछ टूटे हृदयों को खंगालती,
खंडित यादों को भुला डाला,
याद आ जाती है मधुशाला.

क्या है विष और क्या अमृत,
कभी तो सुन्दर कभी विकृत,
कभी है जल कभी ये ज्वाला,
याद आ जाती है मधुशाला.

मित्रों के मिलने का बहाना,
दुस्वरियों को कर दे सुहाना,
मेरे लिए तो सदा ये आला,
याद आ जाती है मधुशाला.

इसका रस्ता बड़ा सुगम है,
पर वापस आना तो दुर्गम है,
ये चक्रव्यूह है या कोई जाला,
याद आ जाती है मधुशाला.