शुक्रवार, 20 अप्रैल 2012 | By: हिमांशु पन्त

ग्रीष्म और यौवन - हाइकु

प्रचंड ग्रीष्म,
ज्यों यौवन प्रगाढ़,
हे देव कृपा.

बने रहो पगला, काम करेगा अगला

जनाब कभी कभी लगता है की हम दुनिया को बेवकूफ बना रहे हैं या फिर नहीं ये दुनिया सब जानती है और हमे अपनी चालाकी पे इतराता हुआ देख हौले से हंस रही है. पर खैर जो कुछ भी है हमने तो मन बना लिया है छलते हुए इस दुनिया को जीने का. हाँ ठीक है दुनिया जानती है तो क्या?? मै क्या करूं मै तो खुश हूँ ना. वास्तव मे आजकल जीवन जीने का यही तो एक रिवाज है.


खुद को ठग के क्यूँ जियूं,
जब पूरा जग सामने खड़ा,
खुद को प्यासा क्यूँ रखूँ,
जब पूरा ताल सामने पड़ा,
बहुत जी चुका घुट घुट के,
अब कर निज ह्रदय को कड़ा.


वास्तव मे अगर आपको सफल होना है तो बस आप एक अच्छे दिमागदार व्यक्ति होने चाहिए जिसका दिमाग चले तो सिर्फ उपद्रव मे. हाँ जी सही पढ़ा आपने आप एक ऐसे व्यक्ति होने चाहिए जो सिर्फ और सिर्फ अच्छी तरह से अपने सिरमौर को और समाज को बेवकूफ बना सके. अगर आप मे सिर्फ ये ही एक गुण भी है तो आप एक सफल व्यक्ति हो. निःसंदेह मुझे अपनी बातों का प्रमाण रखने की जरुरत नहीं है क्यूंकि आप मे से कई खुद भी कई बार बेवकूफ बन के उस व्यक्ति का फायदा करा चुके हो. खैर यहाँ पे बेवकूफ बनाने से मेरा आशय है की बस आप काम करो ना करो, आप को किसी वस्तु विशेष के बारे मे पता हो या ना हो आपको दिखाना होगा की आप तो बस इस मामले मे प्रगाड़ हो. यहाँ पे एक ज्ञान याद आ रहा है, मेरी मेल पे किसी ने कभी अग्रेषित किया था..

कुछ इस तरह की पंक्तियाँ थी.. टूटी फूटी याद हैं कुछ...

काम करो ना करो,
काम की फ़िक्र जरुर करो.
फ़िक्र भी करो ना करो,
काम का जिक्र जरुर करो.
बने रहो पगला, काम करेगा अगला.