रविवार, 1 अप्रैल 2012 | By: हिमांशु पन्त

माँ मै बहुत डरता हूँ

बहुत लम्बी दुर्गम डगर है,
धकेलती हुई सी चलती भीड़,
पता नहीं कहाँ पर दबा हुआ,
तब तुझे ही याद करता हूँ,
पता है माँ मै बहुत डरता हूँ.

तेरे सामने तो जितना बनूँ ,
बाहर बहुतों से निपटना है,
थक भी जाता हूँ बहुत बार,
तब तेरी गोद याद करता हूँ,
पता है माँ मै बहुत डरता हूँ.

बचपन के दिन अच्छे थे,
बस तुझे सताना मनाना,
कभी कुछ गलत कर बैठूं,
तब तेरी डांट याद करता हूँ,
पता है माँ मै बहुत डरता हूँ.