रविवार, 2 मई 2010 | By: हिमांशु पन्त

भुल चुक माफ़... बस ऐसे ही लिख दिया.. क्या लिखूं?

लिखने का मन कर रहा था, कुछ सूझ ही नहीं रहा था... बहुत कोशिश की, कोशिश करते करते चिढ़ सी होने लगी... तो बस ऐसे ही कुछ अपनी सोच को ही लिख डाला की क्या लिखूं...  तो बस कुछ ऐसे ही है, माफ़ करियेगा..

कुछ कुछ सोचता हूँ,
फिर कलम उठाता हूँ,
और
फिर कुछ फाड़ता हूँ,
कुछ लिखने का मन है,
पर क्या लिखूं?

कई बातें मेरे मन मे,
कई अनकहे जज्बात,
और
बहुत सी बिखरी सोचें,
इनमे ही उलझ जाता हूँ,
अब क्या लिखूं ?

तेरी वफायें भी याद हैं,
तेरे धोखे भी साथ हैं,
और
वो उन दिनों का प्यार,
तो कैसे तुझे रुसवा करूं,
अब क्या लिखूं ?

अपने बचपन की बातें,
या लड़कपन के किस्से,
और
वो जवानी की बेरुखी,
किस वक़्त को बयां करूं,
अब क्या लिखूं ?

एक निराला सा गीत,
या एक रूमानी ग़जल,
और
दुनिया पे एक कविता,
इत्ता सब है लिखने को,
पर क्या लिखूं ?