सोमवार, 13 सितंबर 2010 | By: हिमांशु पन्त

परिवर्तन

मन के उफान मे उठती ज्वाला,
व उसमे भभक रहा मेरा मै,

आक्रोश से निकलती एक धधक,
व उसमे धधक रहा मेरा मै,

एक परिवर्तित सा चेतन है कुछ,
व उसमे भटक रहा मेरा मै,

हाँ यह परिवर्तन है जीव का मेरे,
धरा ये भस्म समर्पित है तुझे,

मिला खुद मे मिटटी बना दे,
या कुछ कर हो जावे तर्पण मेरा ..