बुधवार, 15 सितंबर 2010 | By: हिमांशु पन्त

हिंदी दिवस : लेखक, कवि और टिपण्णी

हिंदी दिवस... बस सब जागरूक हो उठते हैं खास तौर से लेखक और कवि... अच्छा है बहुत अच्छी बात है होना भी चाहिए... पर ये दिवस तो पहले से ही मुझे समझ नहीं आते... माता का पिता का भाई का बहन का दादा का दादी का सबके दिवस घोसित कर दिए गए हैं.... सुबह उठते ही पता नहीं फोन मे कौन सा बधाई सन्देश हमे मुह चिढाने को तैयार हो कोई भरोसा ही नहीं... मुझे तो लगता है कुछ दिनों मे पालतु कुत्ता, बिल्ली, गाय, भेंस, चूहा, खरगोश और पता नहीं क्या क्या सारे दिवस बन जायेंगे... खैर मुझे क्या करना दिमाग लगा के, दिमाग वैसे ही कम है खर्च करने पे बढ़ता तो नहीं सर दर्द जरुर होने लगता है. खैर मै इस लेख मै हिंदी की टांग तोड़ने वाले लोगों की बुराई करने वाले मुझ जैसे लेखकों पे ही टिपण्णी करने जा रहा हूँ. क्षमा करियेगा ना भी करिए चलेगा, कौन सा आप लोगों को मेरा पता ठिकाना मालूम है.


हाँ तो मै ये कहा रहा था ये जागरूकता बड़ी अच्छी लगती है मुझे जो किसी किसी दिवस पर लोगों के अन्दर धर कर जाती है जैसे हिंदी दिवस पर कुछ कवियों और लेखकों के ह्रदय मे. और ऐसा होते ही उनकी लेखनी चल पड़ती है टिप्पणियाँ और कसीदें लिखने पूरे समाज पे, ये कौन सा हिंदी दिवस मना रहे हो भाई?? हिंदी के इतिहास भूगोल की चर्चा कर लेते एक बार तो कम से कम लोगों को कुछ ज्ञान मिलता पर नहीं अपनी लेखनी की भड़ास निकालने का अवसर तो भाईसाहब लोगों को दिवसों पे ही मिलता है. सीखा के क्या घंटा चैन मिलेगा आत्मा को. सही भी है अपने बच्चों को तो what is your name पे जवाब देना सिखा सिखा के वैसे ही इतनी थकन लग जाती होगी पहले अपने बच्चों को अंग्रेजी समझना बोलना खाना पीना रहना ओढना सीखा लें फिर बाकियों को बाकी चीजें सिखायेंगे. भैय्या नौजवान पीढ़ी है आप ही लोगों से बनी है आप ही लोगों की सिखाई हुई है. अब बड़े बड़े सी.ई.ओ. लोगों के साथ मंत्र्नाएं और नौकरी करनी है तो अंग्रेजी तो रक्त मे बसानी पड़ेगी. अपने घर के सम्बन्ध मे और अपने संभंध मे ये बातें पसंद आती हैं हम लोगों को पर सामने वाला अगर कुछ बोल भर दे अंग्रेजी का २ ४ शब्द तो बस अगले दिन उस पर कविता और लेख सब लिख दोगे.  तो ये आडम्बर क्यूँ ?? सिर्फ कागजों पे अथवा अपने ब्लॉग मे हिंदी लिख के आप हिंदी का कौन सा सम्मान कर ले रहे हो?? सिर्फ दूसरों को टिपण्णी की विषयवस्तु बना के हिंदी का कौन सा सम्मान कर ले रहे हो?? और अगर आप सवाल उठाते हो तो हिंदी के बीच मे सिर्फ अंग्रेजी के इस्तेमाल पे क्यूँ?? कई सारे सब्द हम अपनी भाषा मे प्रयोग कर रहे हैं जो की उर्दू के फारसी के अरबी के और बल्कि कई अन्य भाषाओं के हैं.. तो सवाल सिर्फ अंग्रेजी को बीच मे घुसेड़ने पे क्यूँ... अरे भाई बंधुओं आप लोग अति विद्वान हैं, ब्लॉग पे हैं आजकल बहुत से नवयुवक ब्लॉग पढ़ रहे हैं पढ़ते हैं कविताओं और लेखों का भी शौक रखते हैं, आप उनपे टिपण्णी करते हो वो पढ़ते हैं और हँसते हैं उनको भी ये नहीं पता होता की ये सब उन्ही के लिए है. तो जनाब इससे बेहतर की आप कुछ ऐसा लिखें जिसे पढ़ के हिंदी के विषय मे ज्यादा ज्ञान मिले हमे और उन्हें. चिढाना, टिपण्णी करना, मजाक उडाना बेशक एक कला है कवि और लेखकों की...... पर अपनी मातृभाषा और अपनी युवा पीढ़ी जिसको आप कुछ सीखा सकते हैं उनपे इस कला का इस्तेमाल करना ???? सही है क्या???
                         मुझे क्षमा करियेगा मै एक अदना सा इन्सां... ज्यादा ज्ञान नहीं इसीलिए अज्ञानियों की तरह कुछ भी लिख देता हूँ पर अगर इसके सार को और मेरी मनोवेदना को समझ पाएं हो तो अगले हिंदी दिवस पे कुछ बेहतर प्रयास करियेगा. मुझे भी कुछ अच्छा सिखायिएगा म भी शायद उसी समाज का एक अभिन्न हिस्सा हूँ जिसपे आप टिपण्णी करते हैं और खुद भी जिसका हिस्सा हैं आप.............



मुझे बहुत शर्म आती है की हमे अपनी मात्र भाषा के लिए एक विशेष दिवस मनाना पड़ रहा है..और हमारे देश के लेखक और कवियों का इसमें कुछ विशेष योगदान है..मुझे नहीं पता की अन्य देशों मे इस तरह का दिवस मनाया जाता है या नहीं पर मेरे देश मे ये नहीं होना चाहिए था.. इस दिवस का मै तो बहिष्कार करता हूँ...

जीवनसार

जीवनपथ की ये डगर,
जटिल दुर्गम सा सफ़र,
छुटते वक़्त की सवारी,
और सपनों की मंजिल.

हर कदम एक पड़ाव,
हर मोड़ एक ठहराव,
वक़्त की भागती सुइयां,
और गुमता सा गलियारा.

विजयी रहने की धधक,
जीवित रहने की ललक,
अजेय काल की लपक,
और भक्षक दिखता जग.

कहीं पर छुपी जीत,
कहीं पर छुपी हार,
यही रस जीवन का,
और यही है जीवनसार.
सोमवार, 13 सितंबर 2010 | By: हिमांशु पन्त

परिवर्तन

मन के उफान मे उठती ज्वाला,
व उसमे भभक रहा मेरा मै,

आक्रोश से निकलती एक धधक,
व उसमे धधक रहा मेरा मै,

एक परिवर्तित सा चेतन है कुछ,
व उसमे भटक रहा मेरा मै,

हाँ यह परिवर्तन है जीव का मेरे,
धरा ये भस्म समर्पित है तुझे,

मिला खुद मे मिटटी बना दे,
या कुछ कर हो जावे तर्पण मेरा ..
शुक्रवार, 3 सितंबर 2010 | By: हिमांशु पन्त

हे शिव

हे शिव तेरे चरणों पे मेरा हर कर्म अर्पण,

कु बना दे या करा दे सु अब सब तुझ पर,

हे देव जीव बनाता व सब कराता भी तू ही,
...
तो अब सब तेरा धूमिल कर या कर तर्पण.