रविवार, 26 अगस्त 2012 | By: हिमांशु पन्त

ये इंसानियत मगरूर होती हैं

दुआएं अक्सर मशगुल होती हैं,

कभी खारिज कभी कुबूल होती हैं।


इनको माँगना मेरी आदत नहीं,

किस्मतें भी कभी मजबूर होती हैं।


गुस्ताखी अक्सर होती हैं हमसे,

माफियाँ भी यहाँ पे जरुर होती हैं।


हादसों पे अपना कोई काबू नहीं,

तेरे जाब्ता जिंदगी मंजूर होती हैं।


शायद तेरा एहसान हो मुझ पे,

ये इंसानियत मगरूर होती हैं।