रविवार, 22 अप्रैल 2012 | By: हिमांशु पन्त

निराकार - हाइकु


तुम वक़्त हो,

तो क्या डर जाऊं मैं,

बीत जाओगे.
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इंतेहां ख़त्म,

सब्र किया बहुत,

जल जाओगे.
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जलता जिस्म,

ग्रीष्म है अति प्रचंड,

कब आओगे.
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आकाश देखो,

दमक रहा ढीठ,

हार जाओगे.

कृपया इस पोस्ट को न पढ़ें

कृपया इस पोस्ट को न पढ़ें क्यूंकि .......................................................................................................................................................................................................................................................................................................................
ये लिखने के बावजूद भी शायद काफी लोग इसे पढने की कोशिश करेंगे, क्या करें गलती आपकी नहीं मानव स्वाभाव की है, जहाँ से दूर रहने को कहो वहीँ ऊँगली करने में मजा आती है. खैर बुरा न मानें मजाक कर रहा हूँ ये पोस्ट सिर्फ और सिर्फ शुद्ध रूप से कुछ जांचने की वजह से की गयी है... तकलीफ के लिए क्षमा हालाकि मुझे क्षमा मांगनी नहीं चाहिए... :)