बुधवार, 15 सितंबर 2010 | By: हिमांशु पन्त

जीवनसार

जीवनपथ की ये डगर,
जटिल दुर्गम सा सफ़र,
छुटते वक़्त की सवारी,
और सपनों की मंजिल.

हर कदम एक पड़ाव,
हर मोड़ एक ठहराव,
वक़्त की भागती सुइयां,
और गुमता सा गलियारा.

विजयी रहने की धधक,
जीवित रहने की ललक,
अजेय काल की लपक,
और भक्षक दिखता जग.

कहीं पर छुपी जीत,
कहीं पर छुपी हार,
यही रस जीवन का,
और यही है जीवनसार.

1 comments:

विवेक सिंह ने कहा…

सुन्दर शब्दों का हार
मन की पुकार
आपकी जय जयकार
यही है टिप्पणी का सार !

बहुत सुन्दर कविता !

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