लबों को सीने की तो अब आदत हो चुकी है,
पेट भरने की जुस्तजू सियासत हो चुकी है,
उन लोगों को क्या इल्जाम दें जो की गैर हैं,
यहाँ तो अपनों की ही खिलाफत हो चुकी है।
बेईमानी तो अपनों की इबादत हो चुकी है,
चूल्हा जलाना भी अब आफत हो चुकी है,
रसोई गैस के दामों को रोने वालों समझो,
यहाँ कोयले से अरबों की दावत हो चुकी है।