शुक्रवार, 17 अगस्त 2012 | By: हिमांशु पन्त

कुछ हाइकु---बदरा रे।

कहाँ हो तुम,
अरे बदरा काले,
देर हो चली।
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गरजता है,
पर बरसे नहीं,
है बेईमान।
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बेचैन मन,
सुखी प्यासी धरती,
 है इन्तेजार।