बुधवार, 5 मई 2010 | By: हिमांशु पन्त

फिर एक कविता.....

कविता पे एक कविता..... क्या क्या लिख जाते हैं हम लोग कविता मे... या कविता होती कैसी है..... या कैसे बनती है... वही लिख दिया.... फिर एक कविता.....


उन दर्दों को फिर आज सुनाने का दिल करता है,
आज फिर एक कविता लिख जाने को दिल करता है.

बारिश की बूदें हों या वो बिजली की चमक,
बस फिर कुछ कह जाने को दिल करता है.
बादलों की गडगडाहट हवा की सरसराहट,
इन सबको आज आजमाने को दिल करता है.

इस मौसम को बस गुनगुनाने को दिल करता है,
आज फिर एक कविता लिख जाने को दिल करता है.

वक़्त की सुइयों को और रिश्ते की डोरों को,
फिर से जग को समझाने को दिल करता है.
सारी भूली यादों को उन अनकहे जज्बातों को,
एक बार फ़िर से जी जाने को दिल करता है.

आंसु को आज फ़िर स्याही बनाने को दिल करता है,
आज फ़िर एक कविता लिख जाने को दिल करता है.