सोमवार, 12 अप्रैल 2010 | By: हिमांशु पन्त

मन की उमंगें

कुछ बावरा सा ही होता है मन, चाहे जिस किसी का भी हो, बहुत सी उमंगें और सोचें उसमे फलांग मारती रहती हैं.. उन्ही मे से कुछ मचलती सी  भावनाओं को बस लिख भर दिया है....

मन करता कभी उडूं मै,
चल जाऊं उस बादल पे,
सहलाऊं धीरे से उसको,
दो बूँद जल की ले आऊं.

मन करता कभी उडूं मै,
छु लूं मै उन तारों को,
तोड़ के बस किसी एक को,
मुट्ठी मे बंद कर लाऊं.

मन करता कभी उडूं मै,
और जाऊं चाँद के पास,
उसको थोडा सा छु कर के,
उसकी ठंडक को पा जाऊं.

मन करता कभी उडूं मै,
जाऊं उस सूरज पे चढ़,
थोडा सा फूक के उसको,
बस कुछ ठंडा कर आऊं.

मन करता कभी उडूं मै,
पक्षियों के संग संग जाऊं,
सीखूं उनसे चहचहाना,
और कुछ तिनके भी ले आऊं.

मन करता कभी उडूं मै,
बारिश की तह तक जाऊं,
ऊपर से देखूं गिरता उनको,
और थोडा सा रंग मिलाऊं.

मन करता कभी उडूं मै,
हवा के संग बहता जाऊं,
दूर चलूँ फिर किसी देश मे,
और थोड़ी सी मिटटी भर लाऊं.


मन करता कभी उडूं मै,
 दूर कहीं आसमान मे,
और देखूं फिर दुनिया को,
फिर वहां से इक चित्र बनाऊं.

मन करता कभी उडूं मै,
 पर्वतों पे कहीं पहुँच के,
उन पे गोदुं कुछ मन का,
और सबको अपने गीत दिखाऊं.

ऊपर वाला

मजहब ... कुछ स्वार्थी लोगों ने इस शब्द को कुछ इत्ता डरवाना बना दिया है की मजहब और धर्म का नाम कुछ खून का सा पर्याय बन गया है.. तो उन्ही भावनाओं को की किस तरह से हमारे घरों मे छोटे बच्चों को क्या सिखाया जा रहा है और इतनी गहनता के साथ बच्चे उसे सीख रहे हैं, मैंने इस रचना मे डाला है.. 

एक दिन उसको पिता ने बोला,
 
बेटा तेरे अन्दर बसते हैं भगवां,
 
खेलने को निकला बाहर दुनिया मे,
 
मिला एक मोहम्मद से कहीं पे,

बोला पता है तेरे अन्दर हैं भगवां,

मोहम्मद बोला हट तुझे नहीं पता,

मेरे अन्दर तो रहता है मेरा खुदा,

बस झगड़ पड़े दोनों बिन सोचे,

तब छोटा डेविड भी आया कहीं से,

पुछा अरे दोस्तों क्यूँ झगड़ते हो,

दोनों बोले बता तेरे अन्दर कौन,

डेविड बोला अन्दर तो ईसा बसता,

तो वो झगडा था एक मासूम सा,

पर था उनका पहला मजहब का,

मै गुजर बैठा तभी उधर से,

लड़ते देखा तो पुछा क्यूँ लड़ते हो,

बोले बताओ अन्दर कौन है बसता,

मैंने कहा देखो हम सब इन्सां,

न कोई हिन्दू न कोई मुसल्मां,

हमारे अन्दर एक ही रचयिता,

चाहे कह लो उसे खुदा या ईसा,

मानो तो बस एक ही रहनुमा,

मै तो कहता उसे ऊपर वाला,

उस पल बच्चे दिए मुस्कुरा,

जैसे कह रहे हों मुझको पगला...