कभी तन्हाई मे बैठ के सोचो.. क्या हम पगले नहीं हैं.. कभी कुछ तो कभी कुछ करते हैं... कोई निश्चितता तो है ही नहीं जीवन मे.. तो हम भी तो एक पगले मानुष ही हैं...
मै तो एक पगला मानुष,
न जाने किस पल क्या कर जाऊं.
किस पल मे मै हंस बैठूं,
न जाने किस पल रो जाऊं.
किस पल को न जाने जी लूं,
न जाने किस पल मर जाऊं.
मै तो एक पगला मानुष,
न जाने किस पल क्या कर जाऊं.
कभी तो हो सकता हूँ सरल सा,
न जाने किस पल मै अड़ जाऊं.
कभी तो बह चलूँ पवन सा,
न जाने किस पल फंस जाऊं.
मै तो एक पगला मानुष,
न जाने किस पल क्या कर जाऊं.
कभी तो लड़ बैठूं अजेय सा,
न जाने किस पल डर जाऊं.
कभी तो वीरों सा गरजूं मै,
न जाने किस पल सहम जाऊं.
मै तो एक पगला मानुष,
न जाने किस पल क्या कर जाऊं.
चलता रहूँ कभी तो हर पल,
न जाने किस पल थक जाऊं.
कभी तो काँटों पे दौडूँ मै,
न जाने किस पल फूलों से कट जाऊं.
मै तो एक पगला मानुष,
न जाने किस पल क्या कर जाऊं.
कभी तो हूँ उन्मुक्त गगन सा,
न जाने किस पल मिटटी बन जाऊं.
कभी तो हूँ मै विशाल सागर सा,
न जाने किस पल ओझल हो जाऊं.
मै तो एक पगला मानुष,
न जाने किस पल क्या कर जाऊं.
उडूं कभी एक स्वछंद पंछी सा,
कभी पिजरे मे बंध जाऊं.
कभी जगा दूं इस दुनिया को,
कभी जगा के खुद सो जाऊं.
मै तो एक पगला मानुष,
न जाने किस पल क्या कर जाऊं.
सुख बांटू कभी जहां को,
कभी दुःख मे खुद खो जाऊं.
कभी अकेलों का साथी हूँ,
कभी भीड़ मे तन्हा हो जाऊं.
मै तो एक पगला मानुष,
न जाने किस पल क्या कर जाऊं.
कभी तो बढ़ चलूँ समंदर सा,
कभी ताल सा थाम जाऊं,
कभी तो मै इन्द्रधनुष हूँ,
कभी अमावस सा बेरंग हो जाऊं,
मै तो एक पगला मानुष,
ना जाने किस पल क्या कर जाऊं.
मै भी तो हूँ तुम सब जैसा,
तुम भी पगले मै भी पगला,
मेरी तरह तुम भी अनजाने,
बस दिखाते हो खुद को सयाने.
तो आओ मेरे साथ मे गाओ,
दुनिया को तुम भी बतलाओ,
मै तो एक पगला मानुष,
न जाने किस पल क्या कर जाऊं.
न जाने किस पल क्या कर जाऊं,
न जाने किस पल क्या कर जाऊं.
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शुरुवात से ही एक स्वछंद पक्षी की भांति जीता रहा हूँ. कुछ लिखना चाहता था हमेशा से, अब क्यूँ है मन में ये, तो इसका भी जवाब है मेरे पास.. बहुत इच्छाएं आशाएं करी, पर सभी तो पूरी नहीं होती और कुछ हो भी जाती हैं, तो वही आधी अधूरी और कुछ पूरी इच्छाओं की खुशी या कष्ट को कहाँ पे कैसे व्यक्त करता, तो बस उठा ली कलम कुछ साल पहले,गोदा और फाड़ा, लिखता था तो मन में भावना आती थी की किसी को पढ़ाऊं, जिसको बोलता वो नाख भौं निचोड़ के आगे बढ़ चलता.. तकनीक का सहारा लेने लगा, तो अब आपके सामने हूँ..
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About Me
- हिमांशु पन्त
- मैं एक वो इंसान हूँ जो जिंदगी को खेलते हुए जीना चाहता है और ऐसे ही जीवन की सभी दुविधाओं को ख़तम करना चाहता है... मतलब की मै कुछ जिंदगी को आसां बनाना चाहता हूँ.. वास्तव मै मै अपने सपनों और इच्छाओं मे और उनके साथ जीना चाहता हूँ.. मैं अपने भाग्यचक्र को हराना चाहता हूँ पर ये भी सच है की मे भाग्यचक्र के साथ चलना भी चाहता हूँ.. शायद मे कुछ उलझा हुआ सा हूँ अपने मे.. तो बस आप मेरे मित्र बन के रहो और साथ ही इस उलझन का एक हिस्सा भी... तो मुस्कुराते रहो और अपनी जिंदगी को जिन्दा रखो... वादा है मुश्किलें आसां हो जाएँगी... :)