मंगलवार, 4 मई 2010 | By: हिमांशु पन्त

एक दफा फिर

लीजिये फिर से आ गया मे अपने नए नए बने शौक को ले के.. हाँ जी पेश-ए-खिदमत है एक और ग़जल... एक दफा फिर..




एक दफा फिर हमे अपनों ने लूटा है,

एक दफा फिर आज ये दिल टूटा है.


दिल पे बहुत किया यकीं अब तक,

अब पता चला की ये दिल झूठा है.


कल तलक सोचा था उन को अपना,

आज फिर उसने मेरा सपना लूटा है.


याद भी उसे कर आखिर क्या करना,

अब तलक कहाँ उसने हमे पूछा है.


मैकदे मे इस ढब गुम चुका यारों,

जैसे पूरा जिस्म मदहोशी मे डूबा है.


वक़्त इस कदर हमसे खफा सा है,

लग रहा मेरा अक्स मुझसे रूठा है.