नौकरी बजाने के ही एक चक्कर मे शहर से बाहर निकले और एक गाजीपुर नमक जिले मे जा पहुंचे. आयकर विभाग मे कुछ औडिट करनी थी तो वहीँ आयकर अधिकारी जी के सामने बैठे थे. साथ मे कोई एक सज्जन और थे कुछ नेता सरीखे या शायद ठेकेदार, अब ये नहीं बता सकता की समाज के या की किसी और चीज के. खैर जो भी थे थे बड़े ही प्रभावशाली व्यक्तित्व. उनकी एक बात ने बड़ा ही प्रभावित किया इतना की बस हम तुरंत ही चाहने लगे की बस कोई आये हमारी बेइज्जती कर दे.. हाँ जी हम तब से अपनी बेइज्जती को तरस रहे हैं साहिब. अब वो बात क्या थी ये भी सुन लीजिये. बकौल उनके आप अपनी बेइज्जती करा लीजिये तो आप विश्व मे जरुर एक ना एक दिन अपना नाम कर लेंगे. नहीं जी ये कोई हवाई बातें नहीं उन्होंने तीन बहुत बड़े बड़े तर्क दिए हमे इस बात के पीछे के. आप भी पढ़िए वो तर्क या वो उदहारण..
पहला तर्क था महात्मा गाँधी जी का जिसमे उनकी दक्षिण अफ्रीका मे एक ट्रेन मे कुछ अंग्रेजों ने उनको बेइज्जत किया था बावजूद इसके की उनके पास प्रथम श्रेणी का टिकेट था. इस बात ने बापू को इस कदर आहत किया की वहां से उन्होंने ठानी की बस अब तो इन सब अत्याचारों के खिलाफ एक अहिंसात्मक जंग छेड़नी होगी और वो दिन था और आज का दिन है कौन नहीं जानता विश्व भर मे बापू को. ये था बेइज्जत होके नाम कमाने वाला पहला तर्क.
दूसरा उदाहरण था बाबा भीम राव अंबेडकर का. कोई एक बारिश के दिन जब बाबा साहेब छोटे बालक थे किसी एक मकान की आड़ मे खड़े हो गए भीगने से बचने के लिए. इसी बीच मकान मालिक ने उन्हें खड़ा देखा और ज्यूँ ही उसे पता चला की ये बालक तो अछूत है, बस क्या था खुद भीगते हुए उसने बाबा साहेब को वहां से खदेड़ दिया. एक घटना और थी जहां पे बालक अंबेडकर किसी बेलगाडी मे बैठ के जा रहे थे, राह मे ही बैलगाड़ी वाले ने उनसे उनके पिता का नाम पुछा और जैसे ही उसे पता चला की बालक तो एक दलित पुत्र है उसने बाबा साहेब को गाडी से उतार दिया. बस उसी दिन बाबा साहेब ने शायद कुछ सोचा और आज के दिन हम जिस देश मे रह रहे हैं वो और उसका हर नागरिक उनके लिखे सिद्धांतों नियमों पे चल रहा है वो चाहे एक दलित हो या कोई ऊँची जात का, एक गरीब हो या बहुत धनवान व्यक्ति.
तीसरा उदाहरण था तुलसी दास जी का.. पत्नी प्रेम मे इतना व्याकुल हो बैठे की एक दिन बिना किसी सुचना या आमंत्रण के वो पहुँच गए अपनी पत्नी से मिलने उनके मायके. बस क्या था उनकी पत्नी उन्हें यकायक देख के कुछ इस तरह शर्मिंदा और क्रोधित हुई की उन्होंने कुछ इस तरह से तुलसी दास जी को कोसा की इस तरह का प्रेम जो तुम मुझसे करते हो बिना बुलाये इस तरह से आ पहुंचे लोग क्या कहेंगे, इतना प्रेम अगर तुमने भगवान से किया होता तो कुछ सार्थक होता. बस ये थी वो बेइज्जती जहां से उन्होंने कुछ ऐसा कर डाला की आज वो विश्व के एक महानतम ग्रन्थ श्री राम चरित मानस के रचयिता के रूप मे जाने जाते हैं.
बस ये तीन महापुरुष और उनकी ये बेईज्जतियाँ. बस हमारे मन मे तब से एक प्रबल इच्छा धर कर बैठी की कोई तो आये और कुछ इस कदर बेइज्जती कर दे की बस हम भी कुछ कर जाएँ इस दुनिया मे. पर कोई उपाय सुझा ही नहीं जिससे हम खुद की बेइज्जती करा पाएं. हाँ एक और बात आती है मन मे की क्या आज के दौर मे जब हर कदम पे नफरत, गतिरोध और जलन रुपी महादानव व्याप्त है तो क्या बेइज्जती रुपी दानव अकेला इनको हरा पायेगा और क्या आज हमारे पास इतनी शर्म और इच्छाशक्ति व्यापत है की हम एक कठोर निर्णय लेके उसपे अमल कर पाएंगे. हाँ क्यूँ नहीं पर उसके लिए बहुत कुछ त्यागना पड़ेगा शायद वो सब कुछ जिसकी हमे आदत है और जिसके बिना हम जीने की सोच भी नहीं पाते.
बेइज्जती हो जाने भर से हम सफल हो जायेंगे??
नहीं बिलकुल भी नहीं. उदाहरण पढने मे तो लगता है हमे भी सुनने मे लगा था की बस बेईज्जती हो जाएगी, मन कुछ कचोट देगा और कुछ कर जायेंगे. पर नहीं वो बेइज्जती भी सिर्फ उन्ही को कचोट सकती है जिनके पास परम इच्छा शक्ति, परम अंतर बल, कठोर मानसिकता और परम सहनशीलता हो. जो उन तीनों के पास था.
पर हमारे पास शायद नहीं है क्यूंकि हम तो हमेशा से आज की उन्नत तकनीक का सहारा लेके जीते आये हैं. चलने को गाडी ऑटो सब मौजूद है. खाने को दुनिया भर के व्यंजन बस जेब भर की दूरी पे हैं. इस कंप्यूटर और मशीनी दुनिया मे आत्म सम्मान और शर्म भी बस दिखावे भर के लिए ही बची है.
पर कोई बात नहीं आप एक बार कोशिश कर के देखिये. हाँ जनाब कोशिश करिए की कोई आपकी भरे समाज मे बेइज्जती का दे क्या पता आपका आत्म सम्मान इतना मजबूत हो की आप उठके कुछ कर ही जाएँ. कोशिश करने मे क्या जा रहा है तो बस कुछ उपाय ढूंढिए अच्छे अच्छे और हमे भी बताइए की कैसे अपनी बेइज्जती करा लें... आखिर हमे भी नाम कमाने का शौक है भाई..
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शुरुवात से ही एक स्वछंद पक्षी की भांति जीता रहा हूँ. कुछ लिखना चाहता था हमेशा से, अब क्यूँ है मन में ये, तो इसका भी जवाब है मेरे पास.. बहुत इच्छाएं आशाएं करी, पर सभी तो पूरी नहीं होती और कुछ हो भी जाती हैं, तो वही आधी अधूरी और कुछ पूरी इच्छाओं की खुशी या कष्ट को कहाँ पे कैसे व्यक्त करता, तो बस उठा ली कलम कुछ साल पहले,गोदा और फाड़ा, लिखता था तो मन में भावना आती थी की किसी को पढ़ाऊं, जिसको बोलता वो नाख भौं निचोड़ के आगे बढ़ चलता.. तकनीक का सहारा लेने लगा, तो अब आपके सामने हूँ..
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- हिमांशु पन्त
- मैं एक वो इंसान हूँ जो जिंदगी को खेलते हुए जीना चाहता है और ऐसे ही जीवन की सभी दुविधाओं को ख़तम करना चाहता है... मतलब की मै कुछ जिंदगी को आसां बनाना चाहता हूँ.. वास्तव मै मै अपने सपनों और इच्छाओं मे और उनके साथ जीना चाहता हूँ.. मैं अपने भाग्यचक्र को हराना चाहता हूँ पर ये भी सच है की मे भाग्यचक्र के साथ चलना भी चाहता हूँ.. शायद मे कुछ उलझा हुआ सा हूँ अपने मे.. तो बस आप मेरे मित्र बन के रहो और साथ ही इस उलझन का एक हिस्सा भी... तो मुस्कुराते रहो और अपनी जिंदगी को जिन्दा रखो... वादा है मुश्किलें आसां हो जाएँगी... :)