खामोशियों मे कभी चीखने का मन होता है बहुत, पर फिर मन सोचने लगता है की क्या फायदा चीख के.. लोग मिलते हैं तो पूरे मन की व्यथाएं, खुशियाँ सब कुछ बोल देने का मन करता है.. पर फिर सोचता हूँ की आखिर क्या बोलूं और क्यूँ बोलूं... तो इस रचना मे जो दो पंक्तियाँ लिखी हैं हर भाग मे, उनका अर्थ मेरे लिए तो बहुत बड़ा और गहरा है.. आशा है की आप भी उसे पकड़ लोगे...
जीवन की कठिन राहों पे,
सफ़र तो अकेले ही करना है,
फिर क्या बोलूं मैं क्यूँ बोलूं.
यादें तो आनी ही हैं,
उनमे ही जीवन कटना है,
फिर क्या बोलूं मे क्यूँ बोलूं.
चिंतन करने की क्यूँ सोचूं,
होनी को तो होना है,
फिर क्या बोलूं मैं क्यूँ बोलूं.
कर्तव्यों की आढ़ मैं,
वादों को तो टूटना है,
फिर क्या बोलूं मैं क्यूँ बोलूं.
सपने तो दिखते ही हैं,
पर रिश्तों को भी तो जीना है,
फिर क्या बोलूं मैं क्यूँ बोलूं.
ख्वाहिशें तो काम है चेतन का,
और उसको तो वो करना है,
फिर क्या बोलूं मैं क्यूँ बोलूं.
जीवन सिर्फ जीता ही तो नहीं,
एक दिन तो उसको भी मरना है,
फिर क्या बोलूं मैं क्यूँ बोलूं.
गलतियां तो हुई है बहुत सी,
पर पीछे जाना तो होगा नहीं,
फिर क्या बोलूं मे क्यूँ बोलूं.
खामोश भी रहा नहीं जाता,
पर दर्दों को भी कोई सुनता नहीं,
फिर क्या बोलूं मैं क्यूँ बोलूं......
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शुरुवात से ही एक स्वछंद पक्षी की भांति जीता रहा हूँ. कुछ लिखना चाहता था हमेशा से, अब क्यूँ है मन में ये, तो इसका भी जवाब है मेरे पास.. बहुत इच्छाएं आशाएं करी, पर सभी तो पूरी नहीं होती और कुछ हो भी जाती हैं, तो वही आधी अधूरी और कुछ पूरी इच्छाओं की खुशी या कष्ट को कहाँ पे कैसे व्यक्त करता, तो बस उठा ली कलम कुछ साल पहले,गोदा और फाड़ा, लिखता था तो मन में भावना आती थी की किसी को पढ़ाऊं, जिसको बोलता वो नाख भौं निचोड़ के आगे बढ़ चलता.. तकनीक का सहारा लेने लगा, तो अब आपके सामने हूँ..
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खो चुका हूँ मै..
मधुशाला के प्यालों मे, बिखरे सपनों के टुकड़ों मे,
मय मे डूबा हुआ कहीं पे, बहुत तन्हा हो चुका हूँ मै,
हाँ आज खुद को खो चुका हूँ मै........
भीड़ मै भी अकेला सा, यादों मे डूबा हर पल,
ख्वाहिशों मे लुटा कहीं पे, बहुत रो चुका हूँ मै,
हाँ आज खुद को खो चुका हूँ मै........
कभी हँसते हुए दुनिया को हंसाता था संग मे,
आज गम के दरिया मे, हंसी को डुबो चुका हूँ मै,
हाँ आज खुद को खो चुका हूँ मै........
पुष्पों की सुगंध को, पंखुड़ियों की कोमलता को,
उपवन के रंगों को भूल के, काँटों को संजो चुका हूँ मै,
हाँ आज खुद को खो चुका हूँ मै.......
दिल खामोश है, दिमाग कुछ परेशां सा हर पल,
नींद आती नहीं अब, शायद बहुत सो चुका हूँ मै,
हाँ आज खुद को खो चुका हूँ मै........
मय मे डूबा हुआ कहीं पे, बहुत तन्हा हो चुका हूँ मै,
हाँ आज खुद को खो चुका हूँ मै........
भीड़ मै भी अकेला सा, यादों मे डूबा हर पल,
ख्वाहिशों मे लुटा कहीं पे, बहुत रो चुका हूँ मै,
हाँ आज खुद को खो चुका हूँ मै........
कभी हँसते हुए दुनिया को हंसाता था संग मे,
आज गम के दरिया मे, हंसी को डुबो चुका हूँ मै,
हाँ आज खुद को खो चुका हूँ मै........
पुष्पों की सुगंध को, पंखुड़ियों की कोमलता को,
उपवन के रंगों को भूल के, काँटों को संजो चुका हूँ मै,
हाँ आज खुद को खो चुका हूँ मै.......
दिल खामोश है, दिमाग कुछ परेशां सा हर पल,
नींद आती नहीं अब, शायद बहुत सो चुका हूँ मै,
हाँ आज खुद को खो चुका हूँ मै........
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About Me
- हिमांशु पन्त
- मैं एक वो इंसान हूँ जो जिंदगी को खेलते हुए जीना चाहता है और ऐसे ही जीवन की सभी दुविधाओं को ख़तम करना चाहता है... मतलब की मै कुछ जिंदगी को आसां बनाना चाहता हूँ.. वास्तव मै मै अपने सपनों और इच्छाओं मे और उनके साथ जीना चाहता हूँ.. मैं अपने भाग्यचक्र को हराना चाहता हूँ पर ये भी सच है की मे भाग्यचक्र के साथ चलना भी चाहता हूँ.. शायद मे कुछ उलझा हुआ सा हूँ अपने मे.. तो बस आप मेरे मित्र बन के रहो और साथ ही इस उलझन का एक हिस्सा भी... तो मुस्कुराते रहो और अपनी जिंदगी को जिन्दा रखो... वादा है मुश्किलें आसां हो जाएँगी... :)