माँ तेरे आँचल में एक बार फिर जगह दे दे,
मेरा वही बचपन और वही वाला समय दे दे,
फिर दौड़ एक बार मेरे पीछे मुझे पकड़ने को,
दोनों हाथों से कस के मुझे फिर जकड़ने को.
पापा भी क्यूँ नहीं डांटते मुझे पहले की तरह,
नहीं जगाते सुबह बचपन के सवेरे की तरह,
क्यूँ नहीं अब उनकी आँखों में वो गर्मी है,
क्यूँ अब मुझसे हर बात में इतनी नरमी है.
शायद यही नुकसान है बड़े हो जाने का,
जानता हूँ प्यार बहुत है दिखता भी है,
मगर मजा ही कुछ था उस ज़माने का,
पापा से छुप के माँ से जुबाँ लड़ाने का.
उम्र के साथ मायने शायद बदल जाते हैं,
हम तो बढ़ जाते हैं पर अंश छुट जाते हैं,
जीवन की आपाधापी में खोये हुए से हम,
भावना सम्मान के आगे प्यार भूल जाते हैं.
2 comments:
bahut khoob..
bahut khoob..
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