बुधवार, 5 अक्तूबर 2011 | By: हिमांशु पन्त

याद आ जाती है मधुशाला

जीवन के कितने पृष्ठ,
कुछ छुए कुछ अनछुए,
कैसे इन सबका सार करूं,
याद आ जाती है मधुशाला.

ग़मों को सह सह टूटी हुई,
जग विरोध से रूठी हुई,
जैसे कोई सकुची सी बाला,
याद आ जाती है मधुशाला.

प्रेमियों के मन को संभालती,
कुछ टूटे हृदयों को खंगालती,
खंडित यादों को भुला डाला,
याद आ जाती है मधुशाला.

क्या है विष और क्या अमृत,
कभी तो सुन्दर कभी विकृत,
कभी है जल कभी ये ज्वाला,
याद आ जाती है मधुशाला.

मित्रों के मिलने का बहाना,
दुस्वरियों को कर दे सुहाना,
मेरे लिए तो सदा ये आला,
याद आ जाती है मधुशाला.

इसका रस्ता बड़ा सुगम है,
पर वापस आना तो दुर्गम है,
ये चक्रव्यूह है या कोई जाला,
याद आ जाती है मधुशाला.

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