रविवार, 28 मार्च 2010 | By: हिमांशु पन्त

कुछ उम्मीदें

उस दिन को कोसूं या फिर आज खुद को दोष दूं,
सोचा ही नहीं था की कुछ गलत सोच लिया था,
जाने क्या था पर इश्क तो तुझसे  कर ही लिया था.

सपनों पे यकीं था पर इस कदर करना था की नहीं,
इस पर तो शायद कभी गौर ही नहीं कर पाए हम,
पता नहीं क्यूँ हर सपना तो तुझको दे ही दिया था.

उम्मीदें तुझसे भी हमे करनी थी या की शायद नहीं,
बस वादे ही करते रह गया उस तमाम वक़्त तेरे साथ,
पर उम्मीदों के साए में तुझको भी तो रख ही लिया था.

वक़्त माँगा था तुझसे या शायद वो भूल थी मेरी ही,
तेरे इनकार को बस मजाक ही समझते रह गए हम,
पर वक़्त के इंतेजार मे तुझको तो रख ही लिया था.

किस्मत पे भरोसा था ना जाने क्यूँ आखिर तक,
कुछ भरोसा तेरा भी हमेशा मेरे साथ था कहीं पे,
पर भरोसे की आड़ मे खुद को तो ठग ही लिया था....

2 comments:

shama ने कहा…

Kasak bhari,lekin sundar rachna!

हिमांशु पन्त ने कहा…

bahut baht dhanyawad..par abhi adhuri hai ye rachna,purn hone pe aapki tippani sarahniya hogi..:)

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