शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011 | By: हिमांशु पन्त

कुछेक ग़जल

क्या मजा है जाने उन्हें याद फरमाने में,
भूले तो वो ही थे हमे किसी ज़माने में,

कौन कहता है सजा है मोहब्बत अरे सुनो,
मजा ही अलग है ख़्वाबों को सजाने में,

वादे करना तो कोई दुस्वरियों का काम नहीं,
उम्र निकल जाती है पूरी इन्हें निभाने में.

किस्से तो अपने भी बने थे किसी वक़्त पे,
पर जुबां पलट जाती है उन्हें सुनाने में.

तेरी यादों के सिलसिले चलायें भी तो कभी,
दोस्त भी तो थक जाते हैं जाम बनाने में.

लगा था की नज़रों में बस वो जम ही गए ,
दो पल न लिया गोया खुद को गिराने में.

कौन कहता है की अब इश्क नहीं करते हम,
मय से दिल लगा लिया है अब मैखाने में.

 

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