प्रचंड सा दर्शित होता जग, क्यूँ दुश्मन सा ललकार रहा,
खोया हुआ तेरा ये आवेश, क्यूँ मूक बन सब निहार रहा.
धधक रही मन मे ज्वाला, क्यूँ फिर भी चित्त खामोश है,
क्यूँ कल का ये वीर पुरुष, बिना युद्ध किये ही हार रहा.
गहराता ये घनघोर धुआं, क्यूँ आज उस को डरा रहा,
वेग पुरुषत्व का था जो, आज क्यूँ कीट सा घबरा रहा,
आक्रोश से भरा चेतन, क्यूँ फिर भुजाएं फड़कती नहीं,
क्यूँ कल का वो देवपुरुष, आज अंधकार से चकरा रहा.
कहाँ गए वो राम कृष्ण, और कहाँ गए वो ब्रह्मा शिव,
देव थे अगर तुम बोलो, क्यूँ कलयुग मे जग को छोड़ा,
क्यूँ नहीं उठता आज भी, कोई अस्त्र काल के नाश को,
या सिर्फ तुम अपनी झूठी गाथा लिखवा के चले गए??
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शुरुवात से ही एक स्वछंद पक्षी की भांति जीता रहा हूँ. कुछ लिखना चाहता था हमेशा से, अब क्यूँ है मन में ये, तो इसका भी जवाब है मेरे पास.. बहुत इच्छाएं आशाएं करी, पर सभी तो पूरी नहीं होती और कुछ हो भी जाती हैं, तो वही आधी अधूरी और कुछ पूरी इच्छाओं की खुशी या कष्ट को कहाँ पे कैसे व्यक्त करता, तो बस उठा ली कलम कुछ साल पहले,गोदा और फाड़ा, लिखता था तो मन में भावना आती थी की किसी को पढ़ाऊं, जिसको बोलता वो नाख भौं निचोड़ के आगे बढ़ चलता.. तकनीक का सहारा लेने लगा, तो अब आपके सामने हूँ..
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About Me
- हिमांशु पन्त
- मैं एक वो इंसान हूँ जो जिंदगी को खेलते हुए जीना चाहता है और ऐसे ही जीवन की सभी दुविधाओं को ख़तम करना चाहता है... मतलब की मै कुछ जिंदगी को आसां बनाना चाहता हूँ.. वास्तव मै मै अपने सपनों और इच्छाओं मे और उनके साथ जीना चाहता हूँ.. मैं अपने भाग्यचक्र को हराना चाहता हूँ पर ये भी सच है की मे भाग्यचक्र के साथ चलना भी चाहता हूँ.. शायद मे कुछ उलझा हुआ सा हूँ अपने मे.. तो बस आप मेरे मित्र बन के रहो और साथ ही इस उलझन का एक हिस्सा भी... तो मुस्कुराते रहो और अपनी जिंदगी को जिन्दा रखो... वादा है मुश्किलें आसां हो जाएँगी... :)
5 comments:
बहुत बढ़िया..
सत्य और अहिंसा के द्वारा जीवन की हर लड़ाई जीती जा सकती है।
@Udan Tastari: Sir bahut bahut dhanyawad.. aap hamesa ek naya hausla dete ho... :)
@manoj ji: ek dum sahi bola aapne..
अगर हम अपनी ग़लतियों को पहचान लें तो शायद इन सारे सवालों के जवाब भी मिल जाएं
सुंदर भाषा का प्रयोग और भावों का उत्तम प्रकटिकरण
बधाई
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.
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