गुरुवार, 8 अप्रैल 2010 | By: हिमांशु पन्त

आज भी उतना ही जीता हूँ मै

जिंदगी कुछ तो बदल जाती है आपके सपनों के टूटने के बाद.. आप जीते तो हो पर वो बात नहीं रह जाती.. सपने तोड़ने वाले को आपका डर रहता है,पर इस बात का नहीं की आपका क्या होगा, इस बात का की आपको कुछ हो गया तो उसको कितनी आत्मग्लानी होगी..

दिल मे चोटें भी हैं, मन मे कई मर्म भी,
इन सब घावों को, तेरी यादों से सीता हूँ मै,
पर तू मत घबरा, आज भी उतना ही जीता हूँ मै....

मय पहले भी पीता था, आज भी प्याले छलकते हैं,
लेकिन पहले खुशियों थी, आज गम मे पीता हूँ मै,
पर तू मत घबरा, आज भी उतना ही जीता हूँ मै....

रोता तो तब भी था, पर वो दर्द दर्द न देते थे,
अब दर्दों का तो पता नहीं, पर वेदनाओं की सरिता हूँ मै,
पर तू मत घबरा, आज भी उतना ही जीता हूँ मै....

जीवन के पृष्ठों पे, हजारों सपनों के किस्से थे,
सपने तो बह गए, अब एक दर्द भरी कविता हूँ मै,
पर तू मत घबरा, आज भी उतना ही जीता हूँ मै....

मेरी फिकर नहीं तुझको, डर है अपने अंतर्मन की,
मत डर चोटिल ही सही, आज भी वही चीता हूँ मै,
तो तू मत घबरा, आज भी उतना ही जीता हूँ मै....

5 comments:

Pushpa Paliwal ने कहा…

awsome

Himanshu Pandey ने कहा…

बहुत खूबसूरत लिख रहे हैं आप ! पहली बार आया हूँ, आता रहूँगा ! आभार !

हिमांशु पन्त ने कहा…

dhanyawad ji... me bhi yahi chahta hoon ki aap hamesa aayein aur meri kamiyon ko ubhar ke door karne ki nahi to kuch sarahna karke protsahit karein..

Udan Tashtari ने कहा…

वाह हिमान्शु जी, बेहतरीन रचना लगी..बहुत खूब!!

हिमांशु पन्त ने कहा…

sir... kuch aur bhi rachnayein hain meri is blog me.. me chahta hoon aap kabhi waqt nikal ke sabhi ko ek baar padhein aur apne vichar dein..

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