रविवार, 26 अप्रैल 2009 | By: हिमांशु पन्त

बंजारा जीवन..

जिंदगी से ख़ुशी की तलाश में घूमता एक बंजारा हूँ मै,
खुशियाँ हैं तो बहुत जिंदगी में फ़िर भी कम लगती हैं.
वो कहते हैं की क्यूँ देखते हो सपने जागती आंखों से,
पर आंखों में इतने सपने हैं की जिंदगी भी कम लगती है.
रात का इंतज़ार तो अब होता नही इस बेसब्र दिल को,
इसलिए जागती आंखों में ही सपनों को ढो लिया करते हैं.
वैसे ये जिंदगी छोटी तो नही अगर हर पल को जिया जाए,
मगर कट जाता है हर पल इसी सोच में की अगले पल क्या किया जाए...

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