गुरुवार, 22 अप्रैल 2010 | By: हिमांशु पन्त

कैसा होता है दीवाना..

अश्रुओं की धारा,
ग़मों का दरिया,
यादों का सागर,
बस कुछ ऐसा ही....


दर्द भरा दिल,
सपनों भरा चेतन,
चित्त मे कई मर्म,
बस कुछ ऐसा ही....

खामोश सी जुबान,
बहकते से कदम,
बुझती सी आँखें,
बस कुछ ऐसा ही....

प्रेम को तलाशता,
पुष्पों को निहारता,
सोचता सा हरदम,
बस कुछ ऐसा ही....

बेरंग जिसका रंग,
ढीला सा एक बदन,
उलझा हुआ जीवन,
बस कुछ ऐसा ही....

मुट्ठी बंद हाथ,
बिखरी सी उंगलियाँ,
उनमे चलती अनबन,
बस कुछ ऐसा ही....

काँटों पे चलता,
पंखुड़ियों से डरता,
खुशबू से उलझन,
बस कुछ ऐसा ही,
होता है एक दीवाना...

2 comments:

Shekhar Kumawat ने कहा…

काँटों पे चलता,
पंखुड़ियों से डरता,
खुशबू से उलझन,
बस कुछ ऐसा ही,
होता है एक दीवाना...

bahut shandar rachna

bahut khub

shekhar kumawat

http://kavyawani.blogspot.com/

दिलीप ने कहा…

Himanshu ji bahut sundar rachna....dewanepan ki kya paribhasha di hai...

http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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