सब चलते ही तो हैं अपने जीवन मे... और ये पंक्तियाँ बस एक चलते जीवन के नाम...
किसी रोज चलते हुए,
एक ख्याल सा आया,
अपने जीवन को मापा,
पर सिर्फ एक शुन्य ही पाया.
उलझी सी कुछ राहें,
कुछ दुर्गम सा सफ़र,
अनजानी सी एक मंजिल,
हर मोड़ पे एक रोड़ा पाया.
कहीं सरल भी था कुछ,
कुछ साथी राही भी थे,
पर हर इक मुश्किल पे,
खुद को बस तन्हा पाया.
क्षुधा भी लगी बहुत पल,
तन का भी साथ ना था,
जल मिला अगर कहीं तो,
उसको भी खारा सा पाया.
सूरज की तपती किरणें,
धुप बहुत थी राहों मे,
छाँव ढूंढी कभी अगर तो,
पेड़ों को भी बिन पत्ते पाया.
लम्बा सफ़र कठिन डगर,
थकान भी लगी बहुत पल,
कुछ ठहरूं सोचा जब तो,
वक़्त को भी कम सा पाया.
हुई इक प्रीत किसी मोड़ पे,
वादे किये कुछ उसने भी,
हमसफ़र बनने का सोचा तो ,
दिल से भी बस धोखा खाया.
बरगलाते हुए चंद चौराहे,
कुछ भटकाते मोड़ भी थे,
राहगीरों से पुछा कभी तो,
उन लोगों ने भी खूब छलाया.
ऐसा नहीं की मंजिल दूर थी,
दिखती सी भी एकदम सामने,
बढ़ चला उस ओर कभी तो,
बस गुमते से मोड़ों को पाया.
ठंडी सी कुछ कोमल किरणें,
रात के अंधियारों मे दिखती,
रौशनी की आड़ मे चला तो,
अंधेरों को गहराता सा पाया.
राहों के संग यादें भी थी,
और उनमे कुछ सपने भी,
सच करने की सोचा जब तो,
सपनों को अनदेखा सा पाया.
नींद भी कभी थी आँखों मे,
सोने का कुछ मन भी था,
बंद करी पलकें अगर तो,
नींदों को उड़ता सा पाया.
चलता तो हूँ अब भी मै,
पर कुछ अनजान सा हूँ,
खुद को ढूंढा अगर कभी तो,
अपने को खोया ही सा पाया.
इस सफ़र की अजब कहानी,
दिल मे भी कुछ थी बेचैनी,
लिखने की सोचा इसको तो,
स्याही को भी बेरंग सा पाया.
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शुरुवात से ही एक स्वछंद पक्षी की भांति जीता रहा हूँ. कुछ लिखना चाहता था हमेशा से, अब क्यूँ है मन में ये, तो इसका भी जवाब है मेरे पास.. बहुत इच्छाएं आशाएं करी, पर सभी तो पूरी नहीं होती और कुछ हो भी जाती हैं, तो वही आधी अधूरी और कुछ पूरी इच्छाओं की खुशी या कष्ट को कहाँ पे कैसे व्यक्त करता, तो बस उठा ली कलम कुछ साल पहले,गोदा और फाड़ा, लिखता था तो मन में भावना आती थी की किसी को पढ़ाऊं, जिसको बोलता वो नाख भौं निचोड़ के आगे बढ़ चलता.. तकनीक का सहारा लेने लगा, तो अब आपके सामने हूँ..
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About Me
- हिमांशु पन्त
- मैं एक वो इंसान हूँ जो जिंदगी को खेलते हुए जीना चाहता है और ऐसे ही जीवन की सभी दुविधाओं को ख़तम करना चाहता है... मतलब की मै कुछ जिंदगी को आसां बनाना चाहता हूँ.. वास्तव मै मै अपने सपनों और इच्छाओं मे और उनके साथ जीना चाहता हूँ.. मैं अपने भाग्यचक्र को हराना चाहता हूँ पर ये भी सच है की मे भाग्यचक्र के साथ चलना भी चाहता हूँ.. शायद मे कुछ उलझा हुआ सा हूँ अपने मे.. तो बस आप मेरे मित्र बन के रहो और साथ ही इस उलझन का एक हिस्सा भी... तो मुस्कुराते रहो और अपनी जिंदगी को जिन्दा रखो... वादा है मुश्किलें आसां हो जाएँगी... :)
3 comments:
बहुत सुंदर रचना।
puri zindgi rakh di saamne waah....
http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/
राहों के संग यादें भी थी,
और उनमे कुछ सपने भी,
सच करने की सोचा जब तो,
सपनों को अनदेखा सा पाया.
-एक पूरा चक्र दर्शा दिया..बहुत उत्तम रचना. लिखते रहिये, शुभकामनाएँ.
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