एक एहसास है मेरे मन का, किसी एक रास्ते को खो देने का दर्द, वो रास्ता जिससे गुजरने मे कभी मुझे दिन भर की खुशियाँ एक पल मे ही मिल जाती थी.. पर आज वो ही सड़क पता नहीं क्यूँ एकदम अजनबी सी है... कदम तो अब भी उधर मुड़ते हैं पर एक अजीब से डर के साथ.. डर उस सड़क के खो जाने का.. उस सड़क की छाँव के खो जाने का.. मंजिल मे न पहुँच पाने का...
मन मे एक मायूसी सी आज फिर छाई है,
हाँ मुझे एहसास है की वो सड़क अब पराई है.
चलता था किसी भी राह पे, कदम खुद मुड़ जाते थे,
उसकी गलियों से गुजरने को, बहाने हर पल बनाते थे.
पर आज उन राहों पे सिर्फ और सिर्फ तन्हाई है,
हाँ मुझे एहसास है की वो सड़क अब पराई है.
दिख जाये बस झलक उसकी, आरजू हमेशा होती थी,
चेहरा जिधर भी होता, नजरें उसको कभी न खोती थी,
पर आज आँखों पे सिर्फ उसकी अधूरी परछाई है,
हाँ मुझे एहसास है की वो सड़क अब पराई है.
बहुत दूर जा चुकी वो, पर अक्स अब भी मेरे पास है,
यादों को भुला भी दूं, तो मन मे उसका एहसास है,
पर उसको सोचने मे भी तो अब खुद की ही रुसवाई है,
हाँ मुझे एहसास है की वो सड़क अब पराई है.
आज भी गुजरता हूँ उन्ही राहों से, तलाशते हुए उसको,
थक सा गया हूँ बेरुखी से, दर्द देता हूँ अब खुद को,
पर खो चुका हूँ उसे मै अब यही मेरी सच्चाई है,
हाँ मुझे एहसास है की वो सड़क अब पराई है.
इस राह के आखिर मे सिर्फ एक अँधेरी खाई है,
हाँ मुझे एहसास है की वो सड़क अब पराई है.
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शुरुवात से ही एक स्वछंद पक्षी की भांति जीता रहा हूँ. कुछ लिखना चाहता था हमेशा से, अब क्यूँ है मन में ये, तो इसका भी जवाब है मेरे पास.. बहुत इच्छाएं आशाएं करी, पर सभी तो पूरी नहीं होती और कुछ हो भी जाती हैं, तो वही आधी अधूरी और कुछ पूरी इच्छाओं की खुशी या कष्ट को कहाँ पे कैसे व्यक्त करता, तो बस उठा ली कलम कुछ साल पहले,गोदा और फाड़ा, लिखता था तो मन में भावना आती थी की किसी को पढ़ाऊं, जिसको बोलता वो नाख भौं निचोड़ के आगे बढ़ चलता.. तकनीक का सहारा लेने लगा, तो अब आपके सामने हूँ..
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- हिमांशु पन्त
- मैं एक वो इंसान हूँ जो जिंदगी को खेलते हुए जीना चाहता है और ऐसे ही जीवन की सभी दुविधाओं को ख़तम करना चाहता है... मतलब की मै कुछ जिंदगी को आसां बनाना चाहता हूँ.. वास्तव मै मै अपने सपनों और इच्छाओं मे और उनके साथ जीना चाहता हूँ.. मैं अपने भाग्यचक्र को हराना चाहता हूँ पर ये भी सच है की मे भाग्यचक्र के साथ चलना भी चाहता हूँ.. शायद मे कुछ उलझा हुआ सा हूँ अपने मे.. तो बस आप मेरे मित्र बन के रहो और साथ ही इस उलझन का एक हिस्सा भी... तो मुस्कुराते रहो और अपनी जिंदगी को जिन्दा रखो... वादा है मुश्किलें आसां हो जाएँगी... :)
13 comments:
इस राह के आखिर मे सिर्फ एक अँधेरी खाई है,
हाँ मुझे एहसास है की वो सड़क अब पराई है.
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
इस राह के आखिर मे सिर्फ एक अँधेरी खाई है,
हाँ मुझे एहसास है की वो सड़क अब पराई है.
-क्या बात है!
यही अहसास बच रहते हैं.
rachna to khubsurat he....ek baat apki saari rachano me dard hee....kaun he apki prerna...............
bahut bahut dhanyawad pasand karne ke liye... hamesa sarahna hi aur likhne ki prerna deti hai..
bahut achha likh rahe hain. aise hi likhte rahie.
अच्छी कविता ,बधाई स्वीकार करें
और लिखते रहें
अच्छी रचना। बधाई। ब्लॉगजगत में स्वागत।
aap sab ki badhai sir aankhon pe... bahut bahut dhanyawad.. bas kosis karta rahunga ki kavya jagat ko kuch swasth rachanyaein de sakoon.. kitna de paya aap log tai karna..
दिख जाये बस झलक उसकी, आरजू हमेशा होती थी,
चेहरा जिधर भी होता, नजरें उसको कभी न खोती थी,
पर आज आँखों पे सिर्फ उसकी अधूरी परछाई है,
हाँ मुझे एहसास है की वो सड़क अब पराई है.
Harek lafz khoobsoorat hai!
क्या बात है बहुत सुंदर लिखा है
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है... हिंदी में आपका लेखन सराहनीय है, इसी तरह तबियत से लिखते रहिये.
इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ये परायी सड़क हमारे दिल में बहुत गहरे तक समायी है ...
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