कुछ मर्म सा है मेरे मन मे कुछ छुट सा जाने का, या कुछ खो जाने का, शायद आपको मेरी पुरानी रचनाओं मे भी इसकी काफी झलक दिखी होगी और आगे भी दिखती रहेगी.. कुछ है जो हमेशा कचोटता है अन्दर से.....
न जाने क्यूँ मे खुद को पहचान नहीं पाता,
गम को तो छुपा भी लेता हूँ कभी कभी,
पर इस मन की वेदना को छुपा नहीं पाता.
न जाने क्यूँ खुद को पथीक कहला नहीं पाता,
मंजिल तो पहचान भी लेता हूँ कभी कभी,
पर रास्तों को कभी पहचान नहीं पाता.
न जाने क्यूँ तेरी यादों को भुला नहीं पाता,
तेरा सच तो पहचान भी लेता हूँ कभी कभी,
पर उन वादों को कभी पहचान नहीं पाता.
न जाने क्यूँ इन इच्छाओं को दबा नहीं पाता,
चेतन को तो समझा भी लेता हूँ कभी कभी,
पर इस नासमझ चित्त को मना नहीं पाता,
न जाने क्यूँ इश्क अब किसी से कर नहीं पाता,
दिल को तो अब लगा भी लेता हूँ कभी कभी,
पर तेरी यादों को अब भी मैं भूला नहीं पाता.
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शुरुवात से ही एक स्वछंद पक्षी की भांति जीता रहा हूँ. कुछ लिखना चाहता था हमेशा से, अब क्यूँ है मन में ये, तो इसका भी जवाब है मेरे पास.. बहुत इच्छाएं आशाएं करी, पर सभी तो पूरी नहीं होती और कुछ हो भी जाती हैं, तो वही आधी अधूरी और कुछ पूरी इच्छाओं की खुशी या कष्ट को कहाँ पे कैसे व्यक्त करता, तो बस उठा ली कलम कुछ साल पहले,गोदा और फाड़ा, लिखता था तो मन में भावना आती थी की किसी को पढ़ाऊं, जिसको बोलता वो नाख भौं निचोड़ के आगे बढ़ चलता.. तकनीक का सहारा लेने लगा, तो अब आपके सामने हूँ..
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About Me
- हिमांशु पन्त
- मैं एक वो इंसान हूँ जो जिंदगी को खेलते हुए जीना चाहता है और ऐसे ही जीवन की सभी दुविधाओं को ख़तम करना चाहता है... मतलब की मै कुछ जिंदगी को आसां बनाना चाहता हूँ.. वास्तव मै मै अपने सपनों और इच्छाओं मे और उनके साथ जीना चाहता हूँ.. मैं अपने भाग्यचक्र को हराना चाहता हूँ पर ये भी सच है की मे भाग्यचक्र के साथ चलना भी चाहता हूँ.. शायद मे कुछ उलझा हुआ सा हूँ अपने मे.. तो बस आप मेरे मित्र बन के रहो और साथ ही इस उलझन का एक हिस्सा भी... तो मुस्कुराते रहो और अपनी जिंदगी को जिन्दा रखो... वादा है मुश्किलें आसां हो जाएँगी... :)
1 comments:
न जाने क्यूँ इश्क अब किसी से कर नहीं पाता,
दिल को तो अब लगा भी लेता हूँ कभी कभी,
पर तेरी यादों को अब भी मैं भूला नहीं पाता.
Sach kuchh log bhulaye nhi ja sakte..........
Really Nice
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