सोमवार, 12 अप्रैल 2010 | By: हिमांशु पन्त

ऊपर वाला

मजहब ... कुछ स्वार्थी लोगों ने इस शब्द को कुछ इत्ता डरवाना बना दिया है की मजहब और धर्म का नाम कुछ खून का सा पर्याय बन गया है.. तो उन्ही भावनाओं को की किस तरह से हमारे घरों मे छोटे बच्चों को क्या सिखाया जा रहा है और इतनी गहनता के साथ बच्चे उसे सीख रहे हैं, मैंने इस रचना मे डाला है.. 

एक दिन उसको पिता ने बोला,
 
बेटा तेरे अन्दर बसते हैं भगवां,
 
खेलने को निकला बाहर दुनिया मे,
 
मिला एक मोहम्मद से कहीं पे,

बोला पता है तेरे अन्दर हैं भगवां,

मोहम्मद बोला हट तुझे नहीं पता,

मेरे अन्दर तो रहता है मेरा खुदा,

बस झगड़ पड़े दोनों बिन सोचे,

तब छोटा डेविड भी आया कहीं से,

पुछा अरे दोस्तों क्यूँ झगड़ते हो,

दोनों बोले बता तेरे अन्दर कौन,

डेविड बोला अन्दर तो ईसा बसता,

तो वो झगडा था एक मासूम सा,

पर था उनका पहला मजहब का,

मै गुजर बैठा तभी उधर से,

लड़ते देखा तो पुछा क्यूँ लड़ते हो,

बोले बताओ अन्दर कौन है बसता,

मैंने कहा देखो हम सब इन्सां,

न कोई हिन्दू न कोई मुसल्मां,

हमारे अन्दर एक ही रचयिता,

चाहे कह लो उसे खुदा या ईसा,

मानो तो बस एक ही रहनुमा,

मै तो कहता उसे ऊपर वाला,

उस पल बच्चे दिए मुस्कुरा,

जैसे कह रहे हों मुझको पगला...

2 comments:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति!

Pushpa Paliwal ने कहा…

mashalah

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